नूरजहाँ बेगम एक रोचक सफ़र इतिहास की .......
नूरजहाँ ( मेहरुन्निसा )
जन्म - 31 मई 1577
जन्म स्थान - कांधार
मृत्यु - 17 दिसंबर 1645
मृत्यु स्थान - लाहौर
पिता - आमिर मिर्जा ग्यास.
वेग
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'नूरजहाँ' का वास्तविक नाम मेहरुन्निसा था ! वह ईरानी आमिर मिर्जा ग्यास वेग की पुत्री !उसका ( जन्म 31 मई 1577 कंधार , मृत्यु - 17 दिसंबर 1645 ई० लाहोर )को हुआ था , मिर्जा ग्यास वेग नौकरी की तलाश में अपने परिवार के साथ भारत आया था !अकबर ने उसकी योग्यता, तीव्र बुद्धि एवं कार्यकुशलता को देखकर मुग़ल प्रशासन में उसे जगह दिया गया ! धीरे - धीरे मिर्जा ग्यास बेग दरबार में अपना प्रभाव बनाने में सफल हुआ ! इसकी सफलता को देखकर जहाँगीर ने उसे ' एतमादुद्दौला ' का ख़िताब दिया ! वह दीवान भी बन गया ! मेहरुन्निसा की परवरिश मुग़ल हरम में होती रही !
विवाह मेहरुन्निसा अब बड़ी हो चुकी थी , उसका विवाह 16 वर्ष की अवस्था में अलनी कुली बेग इस्तलज्जू नामक ईरानी से जो मुग़ल सेना में था , से कर दिया गया ! अली कुली एक वीर और साहसी व्यक्ति था ! उसे जहाँगीर ने ' शेर अफगान ' की उपाधि प्रदान की थी ! शेर अफगान ने जहाँगीर के विद्रोह के समय जहाँगीर का साथ नहीं दिया था तथापि शासक बनने के बाद जहाँगीर ने उसे बंगाल में एक जागीर ( वर्दवान ) देकर भेज दिया ! बंगाल की स्थिति पर नियंत्रण रखने के लिए वहां के सूबेदार मानसिंह को हटाकर कुतुबुद्दीन खां को सूबेदार बनाया गया ! उसे शेर अफगान पर नजर रखने और आवश्यक होने पर दंड देने या उसे आगरा भेजने का निर्देश दिया गया ! कुतुबुद्दीन शेर अफगान की धृस्टता से क्रुद्ध था ! उसे दंड देने के उद्देश्य से वर्दवान पहुंचा और गिरफ्तार करने की कोशिश की जिस पर शेर अफगान ने क्रुद्ध होकर कुतुबुद्दीन की हत्या कर दी , और खुद सिपाहीयों द्वारा मारा गया , यह घटना 1607 ई० में घटित हुई ! शेर अफगान की मृत्यु के पश्चात् मेहरुन्निसा ( नूरजहाँ ) को आगरा बुलवा लिया गया ! मेहरुन्निसा और उसकी पुत्री लाडली बेगम को अकबर की विधवा सलीमा बेगम की सेवा में रखा गया ! कई वर्षों तक सेवा देने के पश्चात् एक दिन मार्च 1611ई० को नौरोज के त्यौहार में मीना बाज़ार में जहाँगीर की नजर मेहरुन्निसा पर पड़ी ! उसकी सुन्दरता से जहाँगीर अत्यंत प्रभावित हुआ !
नूरजहाँ का जहाँगीर के साथ विवाह उसकी सुन्दरता पर मोहित होकर जहाँगीर ने 1611 ई० में मेहरुन्निसा ( नूरजहाँ ) से विवाह कर लिया और उसे नूरमहल और नूरजहाँ की उपाधि प्रदान की !इस विवाह का सबसे ज्यादा असर जहाँगीर पर पड़ा ! उसके रूप और गुणों पर आकर्षित हुए जहाँगीर ने उसे अपना सबसे बड़ा विश्वसनीय सलाहकार बना लिया ! वह जहाँगीर पर विशेष ध्यान देती थी ! वह सम्राट के साथ बराबर रहती और प्रजा के सामने भी दर्शन देती ! अब जहाँगीर पूरी तरह से नूरजहाँ पर आश्रित हो गया था ! वह गरीबों और असहाय की सहायता करती थी ! उसने अनेक निर्धन और अनाथ कन्याओं का विवाह अपने खर्च से करवाया , उसके इस तरह के कार्यों से समाज में भी उसकी प्रतिष्ठा बढ़ी और उसे सभी का प्रेम प्राप्त हुआ ! जहाँगीर के साथ विवाह होने के पश्चात् मुग़ल राजनीति एवं दरबार में नूरजहाँ और उसके सम्बंधियों का प्रभाव बढ़ गया ! उसके पिता ' एतमादुद्दौला ' और भाई आसफ खां दरबार के सबसे प्रभावशाली सरदार बन गए ! नूरजहाँ व्यक्तिगत रूप से सहृदय महिला थी , परन्तु उसे अपने राजनितिक प्रतिद्वंदीयों के प्रति लेश मात्र भी सहानुभूति नहीं थी ! उसने वैसे लोगों को धीरे-धीरे महत्वपूर्ण स्थानों से हटा दिया जो उसके प्रभाव में आने को तैयार नहीं थे ! वह उन सभी सरदारों को संदेह की दृष्टी से देखने लगी जो उसकी नीतियों से सहमत नहीं थे ! नूरजहाँ की इन कार्यवाइयों से और अपने संबंधियों के उच्च पद दिए जाने से दरबार का एक दल नूरजहाँ से असंतुस्ट हो उठा ! इस दल का नेता महावत खां था ! उसने जहाँगीर को समझाने का प्रयास किया की वह स्वयं सत्ता का संचालन करे , परन्तु जहाँगीर ने इस पर तनिक भी ध्यान नही दिया ! इस कारण महावत खां और उसके संबंधियों को अनेक कस्ट उठाने पड़े ! नूरजहाँ की खुर्रम ( शाहजहाँ )पर विशेष कृपा बनी हुई थी , खुर्रम का जहाँगीर के बाद शासक बनना लगभग निश्चित ही था , परन्तु इसी बिच 1620 ई0 में नूरजहाँ की पुत्री लाडली बेगम ( शेर अफगान से उत्पन्न ) का विवाह जहाँगीर के सबसे छोटे पुत्र सहरयार से हुआ ! खुर्रम की तुलना में सहरयार अयोग्य था तथापि नूरजहाँ अपने दामाद ( सहरयार ) को ही गद्दी पर बिठाने का स्वप्न देखने लगी ! इससे उसके भाई आसफ खां , खुर्रम और नूरजहाँ के बिच दूरियां बढ़ने लगी ! 1620 - 21 में नूरजहाँ के माता - पिता का भी देहांत हो गया जो उसकी कार्यवाइयों पर नियंत्रण रखते थे ! फलत: नूरजहाँ का जनता में प्रभाव समाप्त हो गया !
खुर्रम का विद्रोह नूरजहाँ का समर्थन प्राप्त कर खुर्रम बादशाह बनना चाहता था ! उसमे सैनिक योग्यता भी थी ! नूरजहाँ इस बात को भले - भांति समझती थी की अगर खुर्रम ( शाहजहाँ ) बादशाह बन गया तो उसका प्रभाव शासन से कम हो जाएगी , जो यह नहीं चाहती थी ! इसीलिए नूरजहाँ ने जहाँगीर के दुसरे पुत्र सहरयार को महत्व देना शुरू किया क्योंकि सहरयार खुर्रम की अपेक्षा कमजोर और दुर्बल था ! अत: उसके बादशाह बनने पर उसका प्रभाव शासन कार्यों पर पहले की तरह ही बनी रहेगी !शाहजहाँ ने अपने प्रतिद्वंदी को मार्ग से हटाने के लिए विद्रोही राजकुमार खुसरो की हत्या 1621 ई० में करवा दी ! शाहजहाँ को जब कंधार जाने की आज्ञा दी गई तो खुर्रम को शक हुआ की उसकी अनुपस्थिति का लाभ उठाकर शहरयार को गद्दी देने का षड्यंत्र होगा ! इसीलिए , उसने बहाना बनाकर वहां जाने से इंकार कर दिया ! उसके मना करने के बाद नूरजहाँ ने सहरयार और परवेज को कंधार की सेना का संचालन सौंपा , यह सुन खुर्रम ( शाहजहाँ ) और अधिक क्रुद्ध हुआ , और उसने दक्कन में विद्रोह कर दिया ! नूरजहाँ ने विद्रोह को दबाने के लिए अपने भाई आसफ खां ( खुर्रम का ससुर ) को न भेजकर उसने महावत खां को भेजा ! महावत खां भली - भांति शाहजहाँ के विद्रोह को कुचलकर जहाँगीर के सामने आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया ! जहाँगीर ने उसे क्षमा कर दिया लेकिन आगे फिर से वही गलती नहीं करे इसके लिए शाहजहाँ के दो पुत्रों दारा शिकोह और औरंगजेब को बंधक के रूप में दरबार में रखा !
महावत खां का विद्रोह जहाँगीर के समय का सबसे बड़ा विद्रोह था ! नूरजहाँ की नीतियों के कारण साम्राज्य को महावत खां के विद्रोह का सामना करना पड़ा ! महावत खां एक वफादार और योग्य सरदार था !वह तो सिर्फ नूरजहाँ की राजनीती से क्रुद्ध था ! महावत खां ने शाहजहाँ के विद्रोह के दबाने के दौरान उसकी निकटता शाहजादा परवेज से बढ़ गयी थी ! इन दोनों के आपस में मिल जाने से नूरजहाँ के मन में शंका होने लगी की महावत खां परवेज को उत्तराधिकारी बनाने का प्रयास करेगा ! जो की वह किसी भी कीमत पर नहीं चाहती थी , उसने दोनों को अलग करने की तुरंत एक चाल चली ! उसने महावत खां को शीघ्र बंगाल जाने या दरबार में उपस्थित होने को कहा ! उसने दरबार में उपस्थित होना उचित समझा ! दरबार में उसपर मनगढंत आरोप लगाये गए , उसके दामाद को भी अपमानित किया गया तथा उसकी संपत्ति छीन ली गयी ! महावत खां जैसा स्वाभिमानी सरदार इस अपमान को सहन नहीं कर सका और उसने वगावत कर दी ! मार्च 1626 ई० में जहाँगीर के कश्मीर से काबुल जा रहे झेलम नदी के किनारे लगे शिविर पर महावत खां ने आक्रमण कर जहाँगीर और आसफ खां को कैद कर लिया ! लेकिन नूरजहाँ वहां से भाग निकली ! उसने सम्राट को छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह विफल रही ! नूरजहाँ ने महावत खां के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और बादशाह के पास पहुँच गयी ! वह शांत नहीं बैठी हुई थी , उसने जहाँगीर के साथ मिलकर साम, दाम, दंड, भेद की निति अपनाई और महावत खां के समर्थकों को तोडना आरम्भ कर दिया और धीरे - धीरे अपनी सैनिक शक्ति भी बढाती गयी ! इधर महावत खां अपने आप को कमजोर होता देख वह भाग खड़ा हुआ ! अक्टूबर 1626 ई० में परवेज की मृत्यु के पश्चात वह और कमजोर हो गया और शाहजहाँ से जा मिला !
इसी बिच 28 अक्टूबर 1627 ई० को लाहौर के निकट जहाँगीर की मृत्यु हो गयी ! जहाँगीर के मृत्यु के साथ ही नूरजहाँ का प्रभाव भी समाप्त हो गया ! नूरजहाँ को उसके भाई आसफ खां ने उसे गिरफ्तार कर लिया !शाहजहाँ के बादशाह के पश्चात् उसके भरण - पोषण के लिए एक राशि तय कर दी गयी ! नूरजहाँ ने अपने जीवन के बाकि दिन 18 वर्ष राजनीती से दूर रहकर शांति पूर्ण जीवन व्यतीत की !
नूरजहाँ की मृत्यु 1645 ई० में हुई ! नूरजहाँ में अनेक व्यक्ति के गुण थे और सुदरता काबिले तारीफ थी ! वह जहाँगीर से बेहद प्यार करती थी ! उसमे बहत गुण होने के वावजूद एक सबसे बड़ी कमी थी उसकी असीम महत्वकांक्षा !
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